व्यंग - 'ढ़ंपोलशंख'

काल बीतें ।

कालांतर बीत गए । ढ़ंपोलशंख से धोखा खाकर पड़ोसी उसे कबाड़ में डालकर भूल गया था।

क्या कहा आपने? ढ़पोलशंख है क्या बला? पहले उसके बारे में बताऊं।

सही कह रहे हैं आप। आधुनिक जमाने में पुरानी बातें, कहानियां किसे मालूम होती है। अब तो बच्चे भी नानी-दादी से कहानियां ही कहां सुनते है। जो ढ़ंपोलशंख के बारे में मालूम होगा।

तो ढ़ंपोलशंख का किस्सा थोड़े में ही आपको समझा देता हूं । ऐसा है कि पुराने जमाने में एक गरीब ब्राह्मण दाल रोटी की चिंता में परेशान होकर घर छोड़ कर चला गया। रास्ते में भगवान ने उसकी परीक्षा ली। उसमें वह पास हो गया तो खुश होकर भगवान ने उसे एक इच्छापूर्तिशंख दिया। उस शंख से जो भी मांगो वह मिलता। खाना, सोना-चांदी सब। ब्राह्मण की तो चल पड़ी। उसकी खुशियां उसके पड़ोसी से सही नहीं गई। उसने खुशी का राज जाना और उसका वह शंख चुराकर उसकी जगह दूसरा शंख रख दिया। ब्राह्मण की तो फिर वही पुरानी हालत। इस बार फिर से जंगल में गया। फिर भगवान मिले। उन्होंने सारा किस्सा जाना समझा। लालच भी पहचाना। बोले- “इस बार में तुम्हें ढ़ंपोलशंख देता हूं। इससे तुम जितना मांगोगे यह उससे दुगना देने का वादा करेगा पर देगा कुछ भी नहीं। लालची पड़ोसी तुमसे यह मांगेगा। थोड़ी आनाकानी के बाद अपना पुराना इच्छापूर्तिशंख उससे लेकर यह उसे दे देना। हुआ भी ऐसा ही। वादें और केवल वादों से परेशान पड़ोसी को उसे कबाड़ में डालना ही था!

थोड़े में कहा, आप पूरा समझना। अब आप ढ़ंपोलशंख के बारे में जान ही गए। तो आए अब किस्से पर फिर से।

कालांतर के बाद पड़ोसी के धूर्त परिवार को कबाड़ में से ढ़ंपोलशंख मिला। धूर्त, चालाक, संकीर्ण परिवार ने उसके द्वारा जनता में लालच जगाने और भुनाने की सोची। संघ जमा।

परिवार बोला- “कैसे सामान्य दिन है”

“मैं अच्छे दिन लाऊंगा”- ढ़ंपोलशंख बोला। जनता खुश।

“कितनी खराब नगर व्यवस्था है”- परिवार बोला।

“मैं स्मार्ट सिटी बनाऊंगा”- ढ़ंपोलशंख ने उच्चारा। तालियां बजी।

“गरीबी बहुत है। सामान्य परिवार का सालाना साढ़े सात लाख में भी गुजारा नहीं होता है”

“मैं 15 लाख सबके खातों में डालूंगा”- ढ़ंपोलशंख का उत्तर सून जनता जनार्दन गदगद हो गई।

"एक करोड़ युवा बेरोजगार हैं"-नव युवक चिल्लाया।

" मैं दो करोड़ युवाओं को रोजगार दुंगा"

“ एक हजार के नोट से काला धन बढ़ रहा है”- एक बाबा ने सुझाया।

“मैं एक हजार की नोटबंदी कर दो हजार का नोट लाऊंगा”

“परेशान हो कर जनता 25 दिन में लाइन में लग जाएगी”-जनता में से कोई बोला।

“मुझे 50 दिन दे दो नहीं तो चौराहे पर लटका देना”- दुगना कर ढ़ंपोलशंख बोला।

जनता शांत रही। जाल में जो फसी थी। जनता ने एक दिन गुस्से में कहा- “तुम्हें 10 साल हो गए तुमने कुछ किया नहीं”

“मुझे 20 साल दे दो। मैं सब कुछ कर दूंगा”

लालच की मारी जनता अब परेशान हो चुकी थी पर छुटकारा नहीं मिल पा रहा था। ढ़ंपोलशंख की तो चल पड़ी थी।

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